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पत्थर टाकनें वाला भूत

कुछ दिनों पहले एक अजीबों गरीब घटना के बारें में सुना। कि कोई रातों रात सिल और चकरी टांक रहा है। सुन कर यकीन तो नहीं हुआ लेकिन फिर जब अपने घर में भी यही मंज़र देखा तो इनकार करना थोड़ा मुश्किल सा हो गया। लेकिन फिर भी मन में एक जिज्ञासा थी कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है वो भी एक दो जगह नहीं बल्कि हर तरफ से यही बातें सुनने को मिल रही थी। हर अखबार में इसके किस्सों की भरमार थी। लोगो ने तो अपने हिसाब से अलग अलग मनगढ़ंत कहानियाँ भी बनानी शुरू कर दी। लोग ऐसी ही फ़िराक में तो रहते है कि कब ऐसी परिस्थिति आये तो वे अपनी कहानी लेखन की कला को थोड़ा धार दे सके। कोई कहता कि भूत कर रहा है ऐसा, कोई कुछ तो कोई कुछ। मेरे दिमाग में भी घूम घूम कर बस एक ही सवाल आता कि आख़िर ऐसा कौन कर सकता है पर जवाब कुछ भी न था। ऐसे ही कुछ दिन गुज़रते गुज़रते ये खबरें भी ठंडी पढ़ने लगी। फिर अचानक ही सच सबके सामने आ गया। मुझे तो लगा था कि काफी बड़ा सच होगा भूत के जितना बड़ा। पर ये क्या ये सच तो अनुमान से भी ज्यादा छोटा निकला। बस एक कीड़े के आकार जितना। जी हाँ ये एक कीड़ा ही तो था जिसका नाम वैज्ञानिकों ने स्टोन बीटल बताया है। दरअसल

नशीला संगीत

संगीत जिसकी लोग पूजा करते है, जिसे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग माना जाता था वो भी आज इंसान के कर्मों से दूषित हो चुका है। प्राचीन काल में तो संगीत का उपयोग ईश्वर को प्रसन्न करने तथा मन की शांति के लिए होता था। लेकिन आज के समय का संगीत मन की शांति तो नहीं वरन् मन के भटकाव में जरूर सहायक हो रहा है। आज का युग मोह- माया का युग है। संगीत का ये हाल माया के मोह ने ही तो किया है। जब से संगीत की बिक्री का चलन शुरू हुआ है तब से निरंतर इसका ह्रास ही हुआ है। आज तो हर कोई संगीत का निर्माण केवल इसीलिए करता है ताकि उसे वो ऊँचे दामों पर बेच सके। अब चाहे उसे बेचने के लिए उसके अस्तित्व पर ही प्रहार क्यों न हो जाए। आज के युग में संगीत के माध्यम से ईश्वर की आराधना का भी नया ट्रेंड शुरू हुआ है। पहले तो लोग खुद भजन गाकर ईश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश किया करते थे आज तो साउंड सिस्टम में भक्ति गाने बजा दिए बस हो गयी आरती और हो गया भजन। यहाँ तक भी बात कुछ हज़म हो सकती है लेकिन अब तो भक्ति गानों को भी अश्लील हिंदी गानों की धुनों पर बनाया जा रहा है जैसे- बीड़ी जलइले इत्यादि पर। कुछ वर्षो में संगीत के ए